Wednesday, September 16, 2009

सरहद पार-कैदी की पुकार

भारत के सरहद पार,
सलाखों के पीछे से कैदी की पुकार।
हे! भाग्य विधाता,
क्युं नहीं मेरे भाग्य जगाता।
रोज रात को सोता जब मैं,
रो देता हूँ अक्सर तब मैं।
आंखों से गिरते आँसू की धार,
याद दिलाती है माँ के आँचल का प्यार।
नव प्रभात आता है जब-जब,
आतें है मन में विचार तब-तब।
क्या कोई ऐसी सुबह नहीं हो सकती,
कि मुझे आजादी दिला सकती।
या कोई पवन का झोंका संदेश लिए,
आता किसी शाम।
दिल में होती बेइन्तहा खुशी,
होंठों पर होता पैगाम।
सोच-सोच मन कुंठित होता,
नींद बिना रातों को सोता।
देशों को सरहद ने बांटा,
दिल को क्युं नफरत ने काटा।