अस्मिता थिएटर ग्रुप किसी पहचान की मोहताज नहीं। पिछले 20 वर्षों से यह समाज के लिए पथ प्रदर्शक की भुमिका निभा रहा है और अपने सभी नाटकों के मंचन के जरिए हर उस सन्देश को लोगों में व्याप्त करने की कोशिश कर रहा है जिससे की मज़बूत समाज और सुदृढ़ भारत का निर्माण हो। अस्मिता के इस अथक प्रयास पर कुछ पंक्तियाँ पेश करता हूँ।
एक सोच थी, इक शुरुआत हो
जागरूकता समाज में व्याप्त हो।
हनन न हो हमारे अधिकारों का,
हर किसी का सम्मान हो।
कमियों को किनारा कर अथक प्रयास से,
सुदृढ़ भारत का निर्माण हो।
अकेली ऊँगली न रहके मुट्ठी बनो,
अनेकता में एकता के रंग में रंगों।
दस्तक हो चाहे किसी और का द्वार हो,
यह सुन भवें तुम्हारी तन जाये,
जैसे की अपने भाई पर हुआ एक प्रहार हो।
फिर सोचना क्या, तेरा कदम
बुराइयों के खिलाफ एक फरमान हो।
हनन न हो हमारे अधिकारों का,
हर किसी का सम्मान हो।
कमियों को किनारा कर अथक प्रयास से,
सुदृढ़ भारत का निर्माण हो।
एक सोच थी, इक शुरुआत हो
जागरूकता हमारे समाज में व्याप्त हो।
एक सोच थी, इक शुरुआत हो
जागरूकता समाज में व्याप्त हो।
हनन न हो हमारे अधिकारों का,
हर किसी का सम्मान हो।
कमियों को किनारा कर अथक प्रयास से,
सुदृढ़ भारत का निर्माण हो।
अकेली ऊँगली न रहके मुट्ठी बनो,
अनेकता में एकता के रंग में रंगों।
दस्तक हो चाहे किसी और का द्वार हो,
यह सुन भवें तुम्हारी तन जाये,
जैसे की अपने भाई पर हुआ एक प्रहार हो।
फिर सोचना क्या, तेरा कदम
बुराइयों के खिलाफ एक फरमान हो।
हनन न हो हमारे अधिकारों का,
हर किसी का सम्मान हो।
कमियों को किनारा कर अथक प्रयास से,
सुदृढ़ भारत का निर्माण हो।
एक सोच थी, इक शुरुआत हो
जागरूकता हमारे समाज में व्याप्त हो।
Nice one!
ReplyDeleteGreat thoughts and metabolic initiatives!