Thursday, April 18, 2013

कौन जिम्मेदार....?














जब संवेदना वेदना बन भीख मांगती रही,
जब नज़रें राहगीरों को उम्मीद बन ताकती रही।
जब जिंदगी ने भी हार कर कह दिया अलविदा,
अब किस पल का करोगे इंतज़ार,
कि कौन है जिम्मेदार,
हम, तुम या फिर सरकार।

ऐसा क्युं महसूस होता,
की क्या है ये भावनाएँ ?
ऐसा क्यूँ अहसास होता,
की मृत हो चुकी है संवेदनाएँ।
"सोच बदलो देश बदलेगा",
ऐसे सोच पनपने के नहीं दिखते आसार।
अब किस पल का करोगे इंतज़ार,
कि कौन है जिम्मेदार,
हम, तुम या फिर सरकार।

कौन है दोषी, कौन निर्दोष,
क्या यही सोचते रहेंगे हम,
कब आएगा हमे होश ?
जब इंसान ही इंसान की करे अवहेलना,
फिर कुछ कहना ही है बेकार,
अब किस पल का करोगे इंतज़ार,
कि कौन है जिम्मेदार,
हम, तुम या फिर सरकार।

3 comments:

  1. ham 85% cheezon ke liye zimmedaar hote hai sarkar to sirf 15% ,
    sarkar ko kosne se kya hoga
    apna daman saaf rakhna zaroori hai

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  2. why we have reached to this point ? Why we have become robots ? we r living without emotions. This is truem in todays world and is being reflected in your poem. I liked the message and blend of words used in the poem. Ravi Kant Sharma

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  3. संवेदनशील, सटीक और मर्मस्पर्शी....... बस यही शब्द सही लग रहे हैं पढ़ने के बाद......

    Apt reflection of the society that we have become today....Don't ever lose this touch........

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